जब एक दिन इस रोज की खींचतान में मुक्तमाल टूटकर बिखर जायेंगी कुछ मोती नजरों से बचकर बंद अंधेरे में छिपे रहे जायेंगे , शायद वे दोबारा मिल भी जाए तो उपेक्षा में वे एक बार पुनः
कठिन कहीं कुछ भी तो नहीं प्रशस्त है मार्ग , मंजिल तेरे लिए तेरे साथ , खुद तैयार खड़ी हौंसला रखो पहले खुद पे तभी सार्थक सिध्द फलवती तपस्या तेरी , मानव मानवता का वरदान हो निस्स्वार्थ हो
मैया मेरी शेरोंवाली जिनके चरणकमलों में विराजे शक्ति अनन्त ब्रह्माण्ड की ये सारी जिनकी मुखमण्डल की शोभा से नित झलकती है ममता स्नेह अपार जिनसे मिला जीवन , जिनसे पाई पाँव जमाने को भूमि , जिनकी कृपा से ये
दरख्तों घासों और इन दीवारों पर होते होते दोपहरी की चिलचिलाती धूप ढल गई शाम ढलते - ढलते फलक से उतरा कोई जगमगाता नूर फिर धीरे - धीरे पग दो पग बढ़े रंगत - ए - शाम जवाँ हुई आसमाँ पे चाँद सितारों की महफिल क्या खूब सजी बहती नदियों पर चाँदनी का दर्पण
मूर्त अमूर्त दो , एक ही ब्रह्म रुप साकार निराकार का न भेद अनुभूति की व्यापक चेतना देती दोनों को एक समान महत्व एक के अभाव में दूजा अपूर्ण परमात्मा और आत्मा का संबंध अटूट मार्ग अनेक , साध्य एक न कोई बाधा विघ्न विनाशक