मुक्तमाल
जब एक दिन इस रोज की खींचतान में
मुक्तमाल टूटकर बिखर जायेंगी
कुछ मोती नजरों से बचकर बंद
अंधेरे में छिपे रहे जायेंगे , शायद वे
दोबारा मिल भी जाए तो उपेक्षा में वे एक बार पुनः
लापरवाह बन आरोप - प्रत्यारोप में खो दिए जायेंगे ,
शेष मोती से माला दोबारा से गूँथ तो ली जाएगी
पर अफसोस वे अपने पूर्व रुप में नहीं होगी ,
क्योंकि बीच में तनाव को दर्शाती गाँठ भी पड़ी होगी ।
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