क्या बात है यार! बस दो लाइनें, लेकिन कितना कुछ कह गईं। आपने सागर की शांति में छिपे तूफ़ान को जिस तरह से महसूस करवाया, मैं तो वहीं रुक गया। ऐसा लगा जैसे बाहर सब ठहरा हुआ है, लेकिन अंदर लहरें उफान मार रही हैं। कभी-कभी हम भी बाहर से शांत दिखते हैं, लेकिन अंदर खलबली मची होती है।
सुनो , नदियाँ गाती है । चुपचाप कान लगाकर किभी सुनना , नदी तुम्हें कोई न कोई गीत गुनगुनाती मिलेगी । जीवन का राग उड़ेलती हुई बतरस से बातें करती हुई मिलेगी तुम्हें एक नदी जरा गौर से सुनना
मैया मेरी शेरोंवाली जिनके चरणकमलों में विराजे शक्ति अनन्त ब्रह्माण्ड की ये सारी जिनकी मुखमण्डल की शोभा से नित झलकती है ममता स्नेह अपार जिनसे मिला जीवन , जिनसे पाई पाँव जमाने को भूमि , जिनकी कृपा से ये
दरख्तों घासों और इन दीवारों पर होते होते दोपहरी की चिलचिलाती धूप ढल गई शाम ढलते - ढलते फलक से उतरा कोई जगमगाता नूर फिर धीरे - धीरे पग दो पग बढ़े रंगत - ए - शाम जवाँ हुई आसमाँ पे चाँद सितारों की महफिल क्या खूब सजी बहती नदियों पर चाँदनी का दर्पण
निशा की चुनर असंख्य तारों से सजकर किसको ये शगुन भेंट चढ़ाती राह में बार अनगनित दीपक किसकी प्रतीक्षा को बारम्बार अकुलाती ? रात घने अंधेरे तम में डूबा विश्व स्वप्नलोक में जब विचरे खुले नयनालोक से दिपदिप ये कौन किसके सपने देखे ?
क्या बात है यार! बस दो लाइनें, लेकिन कितना कुछ कह गईं। आपने सागर की शांति में छिपे तूफ़ान को जिस तरह से महसूस करवाया, मैं तो वहीं रुक गया। ऐसा लगा जैसे बाहर सब ठहरा हुआ है, लेकिन अंदर लहरें उफान मार रही हैं। कभी-कभी हम भी बाहर से शांत दिखते हैं, लेकिन अंदर खलबली मची होती है।
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