निराशा में आशा

दरख्तों   घासों   और  इन  दीवारों   पर  होते  होते   

दोपहरी   की   चिलचिलाती   धूप  ढल   गई 

शाम   ढलते -  ढलते   फलक   से   उतरा

कोई    जगमगाता   नूर   फिर    धीरे -  धीरे 

पग   दो   पग   बढ़े   रंगत - ए - शाम  जवाँ   हुई 

आसमाँ   पे   चाँद   सितारों   की   महफिल   क्या 

खूब   सजी   बहती   नदियों   पर   चाँदनी   का    दर्पण

बिखरा  क्या   कहती  जीवन  की   सुमधुर  रागिनी

धीरे  बहती  मन्द  समीरा  श्वेत  पुष्प  रजनी  से मिल

लुभावे   मन   के    तार    देती   हृदय   को   झंकार

क्या  कहती  हो  ?  हे  नदिया  ,  हे   नभ   के   वासी

हे  हिमकर  !  हे   नखत  !  हे  श्यामवर्णी  निशाप्यारी  !

कौन   सा   गीत    गाती    हो  ,   कौन   सा   संदेश   सुनाती  हो

किससे    ग्रहण   की   है   ,   ये    मधुर    गायन   विघा

किसकी  आराधना  करती   हुई   रोज   मंदिर   में   शीश  नवाती  हो

परम  चैतन्य   मन    के    सुभाव    को     हे   साध्वी   

करुणा   ममता    स्नेह   की    जननी   अत्यन्त   ही   भाती   हो

तुम   स्नेहसिक्त    दीप   की   अखंड   ज्योति   हो   ना 

जो   निराशा   में    आशा   छिटकाती   हो  !





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