मात - पिता गुरुजन का आशीर्वाद है

बदलता क्रम बचपन से अब तक

अनेक किस्से अनेक कहानियाँ

अनेक अनुभव  

अब तक का तय किया सारा सफर

कोई सुने या न सुने  

अब तक जो भी जीया  

श्रेष्ठ जीया

कर्म से प्रेरित 

सद्वृत्ति से हो चालित

मुश्किलों से हारे नहीं

सफलता की चाह में

कभी असफलता को नकारा नहीं

द्वंद्व में घिर हुए जो कभी विक्षिप्त नहीं

द्वेष दंभ से दूर जीवन ईश्वर का उपहार रहा

ये मैं नहीं मेरे मात -पिता गुरुजन का आशीर्वाद है उनका पुण्य प्रताप है ।



टिप्पणियाँ

  1. आपकी ये पंक्तियाँ पढ़कर ऐसा लगा जैसे किसी ने अपनी ज़िंदगी की डायरी हमारे सामने खोल दी हो—सच में दिल छू गई दोस्त! बचपन से अब तक का सफर यूं तो हर किसी का होता है, लेकिन सब उसे इतनी विनम्रता और गर्व के साथ बयां नहीं कर पाते। आपने न हार को छुपाया, न सफलता को सिर चढ़ाया, बस सच्चाई और साधना की बात की। सबसे ज़्यादा अच्छा लगा कि तूने अपने माता-पिता और गुरुओं का जिक्र बड़ी श्रद्धा से किया।

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    1. रचना को पढ़कर उस पर अपनी महत्ती प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए सादर आभार ..!

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