चहुँओर फिर नवप्रकाश हो

कठिन कहीं कुछ भी तो नहीं

प्रशस्त है मार्ग , मंजिल तेरे लिए  

तेरे साथ , खुद तैयार खड़ी    

हौंसला रखो पहले खुद पे

तभी सार्थक सिध्द फलवती

तपस्या तेरी , मानव मानवता

का वरदान हो निस्स्वार्थ हो

स्वहित से कई बढ़कर परहित    

तेरा संस्कार हो , तेरी अमरनिधि  

विश्व विश्ववारा तेरी पहचान हो 

कि जगाओ अपनी अंतर्शाक्ति को   

नूतन पथ अनुसंधान करो 

खोए हुए सुप्त चिंतन को आवाज दो

सुभावों - सुविचारों का एक   

नया नूतन आकाश दो

वेद और विज्ञान का साथ लो

प्रकृति का सम्मान हो      

जीवमात्र का कल्याण हो

लक्ष्य तेरा निर्द्वन्द्व हो   

संकल्प तेरा अटल हो   

जलाओ वह दीपक    

अपनी मनसा - कर्मशक्ति से

कि विश्व - प्रांगण में     

चहुँओर   फिर  नवप्रकाश   हो !


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