मूर्त अमूर्त
मूर्त अमूर्त दो , एक ही ब्रह्म रुप
साकार निराकार का न भेद
अनुभूति की व्यापक चेतना
देती दोनों को एक समान महत्व
एक के अभाव में दूजा अपूर्ण
परमात्मा और आत्मा का संबंध अटूट
मार्ग अनेक , साध्य एक
न कोई बाधा विघ्न विनाशक
यहाँ ज्योत अखंड विश्वास की चिरपावन
जिसकी प्रतीक्षा में बीत रहे है युग
शून्य की आनंद क्रोड में वहीं समा रहे है
वर्णन से जातो हो तुम पार - पार - अपार
मधुरिम आनंद बरबस लेती
गूँगें का गुड़ समान
ब्रह्माण्ड समाये एक अन्नत बिंदु में
चमक उठी माथे पर बन बिंदिया उज्ज्वल
अब थाम लो रघुराई भटकी हुई डगरिया
देने को अर्घ्य लो देखो
नयनाश्रु में भर आये जल
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