तू कब लौटे का मेरे भूले
उम्मीदों की छाँहों में
ओ परदेसी अब लौट चल अपने गाँव में
सुबहा जो तू निकला घर से
अँखियाँ रस्ता देख रही तब से
सबुका था मन जगजाहिर न किया था
हमनें हर पल माँगी दुआ यहीं रब से
याद आयेगी कभी तुझे कदमों के
पीछे छुटी सूनी गलियाँ
अपने बचपन से जो तूने
इनको कर दिया था किभी गूँजित
याद आयेगी कभी तुझ को
ताल - तलैया नदिया के तीरे
बहती ठंडी पुरवैया
डाले थे सावन में जिन पेड़ों के
नीचे झूले , खिलखिला के डोले
नभ को छू ले , गीत पुराना
फिर गाने को
याद आयेगी किभी तुझको
शाम गुजर गई दिन ढलते - ढलते
रात सपनों में बीती
कितने सावन आ के बरसे
कितने पतझड़ टूटे
कितने फागुन यों गए बीते
रही कचोट अब यहीं मन में
पंछी लौट के आया तरुवर पे
तू कब लौटे का मेरे भूले ...
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