संदेश

जून, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुक्तमाल

जब  एक  दिन  इस  रोज  की  खींचतान  में   मुक्तमाल  टूटकर  बिखर   जायेंगी कुछ  मोती  नजरों  से  बचकर  बंद अंधेरे  में   छिपे  रहे  जायेंगे  ,  शायद  वे दोबारा  मिल  भी  जाए  तो  उपेक्षा  में  वे  एक  बार  पुनः

चहुँओर फिर नवप्रकाश हो

कठिन कहीं कुछ भी तो नहीं प्रशस्त है मार्ग , मंजिल तेरे लिए   तेरे साथ , खुद तैयार खड़ी     हौंसला रखो पहले खुद पे तभी सार्थक सिध्द फलवती तपस्या तेरी , मानव मानवता का वरदान हो निस्स्वार्थ हो

मात - पिता गुरुजन का आशीर्वाद है

बदलता क्रम बचपन से अब तक अनेक किस्से अनेक कहानियाँ अनेक अनुभव   अब तक का तय किया सारा सफर कोई सुने या न सुने   अब तक जो भी जीया   श्रेष्ठ जीया